कल के कथा में राम जन्मोत्सव की कथा हुई बड़े ही धूमधाम से राम जी का जन्मोत्सव हुआ देखिए बड़ा वही होता है जिसके आगमन से परिवार में घर में एवं पूरे नगर में अपार आनंद आए, यहां पर भी राम जी के आगमन से भव्य उत्साह छाया हुआ है पूरे अयोध्यावासी कह रहे हैं भगवान आए भगवान आए कौन भगवान आए ?
छंद
जिनको न पायो पार शेष श्रुति शारद ने
ख़टशास्त्र भाखै बार बार निराकार है.
जिन भगवान का पार 6 शास्त्र 4 वेद और 18 उपनिषद नहीं पा सके ओ शास्त्र बार बार यही कह रहें हैं की ओ प्रभु निराकार हैं आज उसी निराकार ने आकार धारण कर लिया है.किस भगवान् ने आकर धारण किया है ?
सवैया
तीनो लोक चौदह भुवन रचनार जो है,
पर गणना जगजनित विकार में .
जिस भगवान् ने तीनो लोक चौदहों भुवन की रचना की और स्वयं उसके विकार से परे रहे अगर कहें की काजल की कोठरी में चौबीसों घंटे काम करने के बाद भी तन पर एक भी काजल का धब्बा ना लगे आज उस प्रभु ने अवतार ले लिया है.किस भगवान् ने अवतार ले लिया है?
सवैया
विन्दु कवि सार जो है इस जगत असार में
अकार जो है वर्ण में प्रकाश अन्धकार में .
कौन भगवान् आये ?जो इस असार संसार के सार हैं इस संसार का सार कौन है ?मेरे राम या यूँ कहें Moral Of The Story पूरी काहानी के सार हैं हमारे राघव जी “अकार जो हैं वर्ण में ”भगवान् राम सभी वर्णों में अ कार हैं क से लेकर ज्ञ तक कोई भी वर्ण उच्चारण करिए वर्णमाला के सभी अक्षरों में अ के उच्चारण का बोध होगा अर्थात हमारे राम जी सभी वर्णों में अ कार हैं.
अन्धकार के भीतर जो प्रकाश है वही प्रकाश मेरे राम जी हैं.
सवैया
अकार जो है वर्ण में प्रकाश अन्धकार में .
भूमिभार टारिबे के हेतु अवतार लईके
साईं करतार खेलें कौशल्या अगार में
केवल पृथ्वी का भार कम करने के लिए ही नहीं बल्किन अपने भक्तों के मन को रखने के लिए वो निराकार प्रभु साकार स्वरुप धारण कर लिए हैं,जीवन में यदि भरोषा रहेगा तो भगवान् को ढूंढना नहीं पड़ेगा ओ स्वयं ही ढूढ़ते हुए हमारे पास आ जायेंगे.
अब यहाँ पर एक प्रश्न है राम जी वन क्यों गए ?
रावन को मारने ?नहीं रावन को मारने के लिए राम जी को वन जाने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं थी यदि राम जी रावण को मारना चाहते तो अयोध्या में बैठे बिठाये ही एक दिव्य वान छोड़ते और और रावण का अंत अति शीघ्र हो जाता इसलिए उत्तर यह है की राम जी रावण को मारने के लिए वन नहीं गए अब कल्पना करिए जो राम जी चित्रकूट में बैठकर जयंत को कुश का बाण बनाकर मारे ओ जयंत तीनों लोक14 भुवन भागता रहा त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हुए कोई भी देवता नाग उसकी रक्षा नहीं कर पाए फिर अंत में राम जी ही उसकीरक्षा कियेअगर राम जी रावण के ऊपर एक दिव्य बाण का संधान करते तो क्या वह रावण बच पाता ?अर्थात रावण को मारने के लिए राम जी वन नहीं गए इस संसय में बिल्कुल भी मत रहिएगा .
फिर आप लोगों के मन में यह बात आती होगी की ऋषियों से मिलना था इसलिए राम जी वनवास गए मैं आपको बता दूं इस भ्रम में भी मत रहिएगा यदि राम जी को ऋषियों से मिलना होता तो अयोध्या में बैठकर एक दिव्य यज्ञ कराते देश देशांतरों के ऋषियों मुनियों को आमंत्रित करते फिर ऋषियों से उनकी मुलाकात अयोध्या में बैठकर भी हो जाती इसलिए ऋषियों से मिलने के लिए भी राम जी वन नहीं गए.
फिर किस लिए रामजी वन गए कैकई ने कहा इसलिए ?
कैकई ने कहा इसलिए भी राम जीवन नहीं गएअरे राम जी को कौन वन भेजेगा “राम कीन्ह चाहै सोइ होई |करे अन्यथा स नहीं कोई ||”राम जी को कौन वन भेजेगा वह तो स्वयं ही बन गए क्यों गए ?
अगर हम आपको कहें कि आपके घर में हम दो-चार दिनों में आएंगे आप हमारा कितने दिन इंतजार करोगे 2 दिन 4 दिन 5 दिन 10 दिन या 1 साल अगर इतने में हम नहीं आए तो आपका भरोसा टूट जाएगा आप सोचेंगे कि उन्होंने कहा था नहीं आए अब नहीं आएंगे वह बहुत धोखेबाज हैं
शबरी मैया प्रतिदिन राम जी का इंतजार करती थी सुबह उठकर स्नान करती रास्ते में फुल बिछाती एक-एक बैर को चख चख कर राम जी के लिए रखती और दिन भर राम जी के इंतजार में बैठी रहती पूरे दिन में जब राम जी नहीं आते अंधेरा हो जाता तो वह सोचती थी कि आज हमारे राम जी कहीं फंस गए होंगे आज नहीं आए तो कल आएंगे फिर से अगले दिन वही काम ऐसा करते-करते शबरी मैया वर्षों तक इंतजार करती रही उसे अपने गुरु की बातों पर भरोसा था गुरु के प्रति उसकी निष्ठा प्रबल थी वह सोचती थी कि हमारे गुरु जी ने कहा है तो राम जी अवश्य आएंगे आज नहीं तो कल,कल नहीं तो कभी ना कभी रामजी अवश्य आएंगे इसी भरोसे को राम जी पूरा करने के लिए वनवास गए और कोई दूसरा कारण नहीं था यदि राम जी वन नहीं जाते शबरी की जो गुरु के प्रति निष्ठा थी वो निष्ठा निष्फल हो जाती और जो भरोसा था टूट जाता उसी निष्ठा और भरोसे को कायम रखने के लिए राम जी वन गए .
कल की कथा के प्रसंग में हमने आपसे बताया था कि भरोसे को कायम रखते हुए मनु महाराज ने 23000 वर्ष तक तपस्या किया मनु जी की तपस्या को देखकर ब्रह्मा,विष्णु और महेश तक उनके समीप गए.”विधि हरिहर तप देखिए अपारा | मनु समीप गए बहुबारा ”
23000 वर्ष में हर साल मनु के समीप ब्रह्मा जी जाते थे,इन 23 हजार सालों में मनु के पास ब्रह्मा जी पूरे छह बार गए 1000 वर्ष के अंतराल में एक बार ब्रह्मा जी जाते ब्रह्मा जी कहते थे आपकी तपस्या पूरी हुई ब्रह्मलोक ले लो जो वरदान मांगोगे वह सब में देने को तैयार हूं परंतु मनु सतरूपा कुछ बोलते नहीं थे अपने तपस्या में लगे रहते थे, फिर एक हजार वर्ष के अंतराल में पूरे सात बार विष्णु जी गए विष्णु जी कहते पूरा विष्णु लोक ले लो बैकुंठ ले लो जो मांगोगे देने को तैयार हूं परंतु अपनी तपस्या बंद कर दीजिए विष्णु जी ने कई प्रकार के लालच दिए फिर भी मनु और सतरूपा अपने संकल्प के प्रति अडिग रहे कुछ बोल भी नहीं बोले.
फिर 1000 वर्ष के अंतराल में शिवजी गए 10000 सालों में पूरे 10 बार गए बोले पूरा कैलाश ले लो जो वरदान आप चाहिए वह सब देने को तैयार हूं परंतु अपनी तपस्या बंद कर दो लेकिन मनु और सतरूपा अपने संकल्प के समनांतर कोई विकल्प नहीं देखे उन्हें भरोसा था कि एक दिन हमारी तपस्या संकल्प अवश्य पूरा होगा मनु और सतरूपा की सोच एक ही थी कि भगवान शिव राम जी के जिस स्वरुप का दर्शन करते हैं उसी स्वरूप का दर्शन हमें चाहिए और उन्ही के समान हमें पुत्र चाहिए यही उनका संकल्प था उनका भरोसा टूटा नहीं एक दिन उसी भरोसे को बचाने के लिए कायम रखने के लिए भगवान स्वयं मनु सतरूपा को दर्शन दिए वही मनु और सतरूपा आगे चलकर दशरथ और कौशल्या बने इस तपस्या के फलस्वरुप दशरथ जी के यहां राम जी अवतरित हुए तो जीवन में अपने संकल्प के प्रति भरोषा रखें और कोई विकल्प संकल्प के सामने ना देखें अन्यथा आपका संकल्प टूट जायेगा कोई भी नहीं बचा पायेगा.