तो चलिए राम भक्तों ज्यादा समय न व्यर्थ करते हुए आपको राम कथा की और ले चलते हैं ,मानस का एक न्याय कहता है की जब भी किसी से प्रेम स्थापित करना हो तो सर्वप्रथम उसके बारे में जानना आवश्यक है क्यों जब तक सामने वाले पर आपका विश्वाश नहीं होगा तब तक प्रेम होने वाला नहीं है ,और विश्वास होने के लिए उसको जानना आवश्यक है,तुलसीदास जी कहते हैं मानस में जाने बिनु न होई परतिती ,बिनु परतीति होई नहिं प्रीती.
जब तक जानेगें नहीं तब तक परतीति यानि विश्वास नहीं होगा और जब तक विश्वास नहीं होगा प्रेम होने वाला नहीं है तो जानेगे कैसे महापुरुषों ने जानने के लिए इस मानस के माध्यम से गाया सुनाया और समझाया ,वेदों के हिसाब से मानें तो इस मानस की कथा चार स्थानों पर सुनाई गयी है सबसे प्रथम स्थान है काशी का अस्सी घाट काशी, तो आप लोग जानते होंगे ये वही मोक्ष दायिनी काशी है जो भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित नगरी है इस स्थान पर वक्ता के रूप में स्वयं पूज्यपाद श्री तुलसीदास जी बैठे हैं श्रोता के रूप में संतों का समाज है अथवा गंगा मैया हैं और गोस्वामी जी कहते हैं “स्वान्तः सुखाय तुलसी” अर्थात तुलसी दास जी का स्वयं का अपना मन है,इस घाट का नाम है शरणागत घाट मानस के पहले वक्ता गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं- मै आप लोगों को वह कथा सुनाऊंगा जो की प्रयागराज में याग्यवल्क्य ऋषि ने भरद्वाज को सुनाई थी ,अब दुसरे कथा वाचक श्री याज्ञवल्क्य ऋषि और श्रोता हैं श्री भरद्वाज जी और स्थान है श्री तीर्थराज प्रयाग और उस घाट का नाम है कर्मकांड घाट ,याग्यवल्क्य ऋषि जी कहते हैं श्री भरद्वाज ऋषि- से ऋषिवर मै आपको वो कथा सुनाऊंगा जो की कैलाश पर्वत पर बैठ कर भुतभावन भगवान श्री शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी,अब तीसरे कथा वाचक श्री भगवान शिव हैं,और श्रोता के रूप में माता पार्वती जी विराजमान हैं ,और स्थान है कैलाश पर्वत नाम है ज्ञानघाट बाबा शिव कहते हैं माता पार्वती से कि हे देवी मैं आपको वह कथा सुनाने जा रहा हूँ जिस कथा को मैंने श्री कागभुसुण्डी जी के मुख से सुनी थी .
अब चौथे वक्ता के रूप में कागभुशुण्डी जी महाराज हैं और स्थान का नाम हिमालय का निलगिरी पर्वत तथा घाट का नाम मानसकार भक्ति घाट है और श्रोता के रूप में बहुत सारे पक्षी हैं, परंतु मुख्य श्रोता के रूप में पक्षियों के राजा भगवान श्री विष्णु जी के वाहन गरुड़ भगवान जी हैं और इन चारों स्थानों पर कथा प्रारम्भ करने से पूर्व वक्ताओं ने कथा की महिमा गाई है.
सभी वक्ताओं ने अपने अपने श्रोताओं को अपने अपने बुद्धि विवेक के अनुसार कथा के महत्व को बताया यह रामकथा किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है यह पीएचडी वाले को और कम पढ़े हुए व्यक्ति को भी समान प्रकार से समझ आती है अर्थात ये राम कथा जितनी एक गाय चराने वाले व्यक्ति को समझ में आती है ठीक उतना ही बुद्धिमान व्यक्ति को भी समझ में आती है हाँ उन व्यक्तियों को ये कथा नहीं समझ में आती है जो “जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन कर साथ,तिन्ह्कहुं मानस अगम अति जिन्हहिं न प्रिय रघुनाथ” अर्थात जिनके मन में श्रद्धा नहीं है और संतों का साथ नहीं है और जिनको श्री रघुनाथजी प्रिय नहीं हैं, उनके लिए यह मानस अत्यंत ही अगम है, तुलसीदास जी राम चरित मानस की रचना संस्कृत भाषा में करना चाहते थे जब वो संस्कृत में दिन भर लिखते और रात को विश्राम करने के लिए जाते अगले दिन आकर देखते तो पहले का सब लिखा मिट जाता था फिर तुलसी दास जी को बहुत ही ग्लानि हुई और भगवान शिव की उपासना किये,तत्पश्चात शिव जी के निर्देंसनुसार रामायण की रचना सरल अवधी भाषा में किये.