यह राम कथा जल्दी ही किसी को समझ में नहीं आती,इसके लिए लंबे समय तक सत्संग करने की आवश्यकता होती है,जब लंबे समय तक सत्संग होगा तब जाकर हमारे हृदय के मोह समाप्त होंगे भगवान शिव जी माता पार्वती से कहते हैं कि चौ-“जब बहु काल करिय सतसंगा,तबहिं होहिं सब संसय भंगा.” शिव जी ने आगे कहा कि कलयुग में राम कथा वह कुल्हाड़ी है जो काम,क्रोधऔर लोभ को काट कर प्रकाश मय करने वाली है अर्थात जब जीवन में एक भीअंधकार रूपी विकार नहीं रहेंगे तो यह जीवन सार्थक हो जाएगा,राम जी की कथासंशय रूपीपंछी को भगाने के लिए ताली के समान है जिस प्रकार से किसी वृक्ष पर कई पंछी बैठे रहते हैं कोई व्यक्ति जाकर ताली बजा दे तो सारे पंछी उड़ जाते हैं ठीक उसी प्रकार से यह राम कथा ताली के समान है.
यह बातें भगवान शिव जी ने माता पार्वती जी बताईं,लेकिन क्षमा कीजिएगा इस कथा के पंडाल में बैठे हुए कई लोगों का संशय घटने के बजाय और भी बढ़ जाता है,बल्किन समाप्त नहीं होता है क्यों ? कथा में बैठे रहते हैं शरीर से परन्तु मन से बाहर घूमते रहते हैं,अचानक मन लौटकर आया पीछे की बातें सुनी नहीं आगे की बात सुनीं तो समझ में नहीं आया “अरे ये कैसे हो गया ?”इसी को संसय कहते हैं भगवन शिव जी ने माता पार्वती से यही बताया है की राम कथा ही कलयुग में एक मात्र ऐसा साधन है जिसकी मदद से संसय को समाप्त किया जा सकता है.
तीसरे स्थान पर तुलसीदास ने कथा की महिमा गाई और चौथे स्थान निलगिरी पर्वत पर वक्ता के रूप में कागभुसुण्डी जी हैं और श्रोता के रूप में गरुण जी और कई सारे श्रोता हैं यहाँ पर श्रोताओं ने ही कथा को सुनाया.यहाँ पर गरुण जी को मोह हो गया भगवान् शिव ने कहा आप जाइए निलगिरी पर्वत पर कागभुसुण्डी से कथा श्रवण करिये आपके सारे संसय दूर हो जायेंगे,यहाँ पर श्रीराम के आशीर्वाद स्वरुप कागभुसुण्डी जी कथा की महिमा सुनाते थे इस स्थान की महिमा ऐसी हो गयी थी की इस स्थान के दर्शन मात्र से ही गरुण महाराज के सारे संसय और मोह समाप्त हो गए,गरुण जी सोचने लगे की जिस स्थान के दर्शन मात्र से ही मेरे सारे भ्रम और संसय दूर हो गए यदि यहाँ मै बैठ कर कथा सुनूंगा तो पता नहीं क्या क्या चमत्कार होंगे इसलिए हे कागभुसुण्डी जी आप मुझे विधिवत कथा सुनाइए मै आपके मुखारविंद से कथा श्रवन कर तृप्त होना चाहता हूँ,सभी श्रोताओं ने विधिवत राम कथा की महिमा गाई.
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात कांड की रचना की है जो इस प्रकार हैं 1-बालकाण्ड 2-अयोध्याकाण्ड 3-अरण्यकाण्ड 4-किष्किन्धाकांड 5-सुन्दरकाण्ड 6-लंकाकाण्ड और 7-उत्तरकाण्ड प्रत्येक काण्ड को समर्पित करने के लिए तुलसीदास जी ने बालकाण्ड में सात श्लोक लिखा है पहले श्लोक में उन्होंने गणपति एवं सरस्वती का वंदन किया है. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि,मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ।1।
दुसरे श्लोक में तुलसी दास जी ने भगवान शिव व माता पार्वती को प्रणाम किया भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ,याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ।2।
देखिये माता पार्वती श्रद्धा हैं जब तक जीवन में जब तक श्रद्धा और विश्वाश का समन्वय नहीं होगा तब तक भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होने वाली है चाहे हम कितना भी प्रयाश क्यों न करलें.दो- जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन कर साथ । तिन्हकहुं मानस अगम अति जिन्हहिं न प्रिय रघुनाथ ।तुलसीदास जी कहते हैं जिनके जीवन में श्रद्धा, विश्वाश नहीं है और श्री रघुनाथ जी से प्रेम नहीं है उनको ये राम चरित मानस अत्यंत ही गूढ़ अर्थात अगम प्रतीत होगी उनको कुछ भी समझ में नहीं आने वाला है ।
संबल यानी भरोसा,विश्वाश किसी भी व्यक्ति के जीवन यदि संबल की प्राप्ति हो जाये तो कितना भी दुर्गम लक्ष्य क्यों न हो उसे आसानी से प्राप्त कर सकता है,अस्तु तुलसीदास जी ने अपने द्वितीय श्लोक में श्रद्धा व विश्वाश की प्रतिमूर्ति माता पार्वती व भगवान शिव जी को प्रणाम किया है,और तीसरे श्लोक में भगवान् शिव को गुरु के रूप में प्रणाम किया वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्। यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ।3।
और चौथे श्लोक में हनुमान जी एवं वाल्मीकि जी को प्रणाम किया सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ,वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ ।4।
तथा पांचवें श्लोक में जगत जननी माता सीता- उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।,सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।5। एवं छठें श्लोक में कलिकारण भगवान राम को प्रणाम किया है.
यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ।6।
तथा सातवें श्लोक में राम चरितमानस की रचना किस प्रकार से किया है उस पर प्रकाश डाला है
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्,
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा,
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति ।7।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं की नानापुराण,चारों वेद, छहों शास्त्र और जितने भी रामायण लिखे गए हैं,मैंने इन समस्त ग्रंथों के सार को निचोड़ कर रामचरित मानस में भर दिया है “देखिये ये राम कथा गाते गाते जब तक वक्ता को आनंदित नहीं कर देती तब श्रोताओं को आनंद नहीं आने वाला है “ठीक उसी प्रकार तुलसीदास जी कहते हैं की मै अपने अन्तः मन को शुद्ध एवं आनंदित करने के उद्देश्य से गा रहा हूँ “स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा,भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति”
तुलसीदास ने सप्तश्लोकों के दौरान पञ्च देव उपासना में पांच सोरठे लिखे उसके वंदना क्रम में आगे बढ़ते हुए अपने गुरु की वंदना की इसके बाद ब्राह्मणों की वंदना की यहाँ तक की राम चरित मानस में तुलसीदास जी ने दुष्टों की भी वंदना की चौ-सियराम मय सब जगजानी । करहुं प्रणाम जोरि जुगपानी ।।
अब कई लोगों के मन में प्रश्न उठता है की तुलसीदास जी दुष्टों की वंदना क्यों किये हैं ? इसपर तुलसीदास जी स्वयं कहते हैं जब हमारे राम जी सज्जनों के ह्रदय में हैं तो दुर्जनों के ह्रदय में क्यों नहीं हो सकते,इसके बाद तुलसीदास ने परिकर समाज की वंदना की इसी क्रम में बाबा ने राम जी के नाम वंदना की अर्थात राम जी के नाम की महिमा गाये,कलिकाल में भगवन से बड़ा व सहारा उनका नाम है,भगवान् कब मिलेंगे ?दिखाई भी देंगे या नहीं ? यह किसी को भी नहीं पता है,परन्तु भगवान् का नाम अत्यंत ही सुलभ है आप किसी भी गुरु के पास जाइए मठ में जाइए वहां आपको भगवान् के नाम की ही दीक्षा मिलती है क्योंकि कलयुग में डूब रही नौका को केवल भगवान का नाम ही पार लगा सकता है चौ-कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ।